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मू॒र्धा दि॒वो नाभि॑र॒ग्निः पृ॑थि॒व्या अथा॑भवदर॒ती रोद॑स्योः। तं त्वा॑ दे॒वासो॑ऽजनयन्त दे॒वं वैश्वा॑नर॒ ज्योति॒रिदार्या॑य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mūrdhā divo nābhir agniḥ pṛthivyā athābhavad aratī rodasyoḥ | taṁ tvā devāso janayanta devaṁ vaiśvānara jyotir id āryāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मू॒र्धा। दि॒वः। नाभिः॑। अ॒ग्निः। पृ॒थि॒व्याः। अथ॑। अ॒भ॒व॒त्। अ॒र॒तिः। रोद॑स्योः। तम्। त्वा॒। दे॒वासः॑। अ॒ज॒न॒य॒न्त॒। दे॒वम्। वैश्वा॑नर। ज्योतिः॑। इत्। आर्या॑य ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:59» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:25» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:11» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वैश्वानर) सब संसार के नायक ! जो आप (अग्निः) बिजुली के समान (दिवः) प्रकाश वा (पृथिव्याः) भूमि के मध्य समान (मूर्द्धा) उत्कृष्ट और (नाभिः) मध्यवर्त्तिव्यापक (अभवत्) होते हो (अथ) इन सब लोकों की रचना के अनन्तर जो (रोदस्योः) प्रकाश और अप्रकाश रूप सूर्यादि और भूमि आदि लोकों के (अरतिः) आप व्यापक होके अध्यक्ष (अभवत्) होते हो, जो (आर्याय) उत्तम गुण, कर्म, स्वभाववाले मनुष्य के लिये (ज्योतिः) ज्ञानप्रकाश वा मूर्त्त द्रव्यों के प्रकाश को (इत्) ही करते हैं, जिस (देवम्) प्रकाशमान (त्वा) आपको (देवासः) विद्वान् लोग (अजनयन्त) प्रकाशित करते हैं वा जिस बिजुलीरूप अग्नि को विद्वान् लोग (अजनयन्त) प्रकट करते हैं (तम्) उस आप ही की उपासना हम लोग करें ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - जिस जगदीश्वर ने आर्य अर्थात् उत्तम मनुष्यों के विज्ञान के लिये सब विद्याओं के प्रकाश करनेवाले वेदों को प्रकाशित किया है तथा जो सब से उत्तम सब का आधार जगदीश्वर है, उस को जानकर मनुष्यों को उसी की उपासना करनी चाहिये ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

ये वैश्वानर यो भवानग्निरिव दिवः पृथिव्या मूर्द्धा नाभिश्चाभवदथ रोदस्योररतिरभवदार्यायेज्ज्योतिरिदेव यं देवं देवासोऽजनयन्त तन्त्वा वयमुपासीमहि ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मूर्द्धा) उत्कृष्टः (दिवः) सूर्य्यादिप्रकाशात् (नाभिः) मध्यवर्त्तिः (अग्निः) नियन्त्री विद्युदिव (पृथिव्याः) विस्तृताया भूमेः (अथ) अनन्तरे (अभवत्) भवति (अरतिः) स्वव्याप्त्या धर्त्ता (रोदस्योः) प्रकाशाऽप्रकाशयोर्भूमिसूर्ययोः (तम्) उक्तार्थम् (त्वा) त्वाम् (देवासः) विद्वांसः (अजनयन्त) प्रकटयन्ति (देवम्) द्योतकम् (वैश्वानर) सर्वप्रकाशक (ज्योतिः) ज्ञानप्रकाशम् (इत्) एव (आर्याय) उत्तमगुणस्वभावाय ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - यो जगदीश्वर आर्य्याणां विज्ञानाय सर्वविद्याप्रकाशकान् वेदान् प्रकाशितवान् यः सर्वतः उत्कृष्टः सर्वाधारो जगदीश्वरोऽस्ति, तं विदित्वा स एव मनुष्यैः सर्वदोपासनीयः ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या जगदीश्वराने आर्य अर्थात् उत्तम माणसांच्या विज्ञानासाठी सर्व विद्यांचा प्रकाश करणाऱ्या वेदांना प्रकाशित केलेले आहे व जो सर्वात उत्तम सर्वांचा आधार जगदीश्वर आहे. त्याला जाणून माणसांनी त्याचीच उपासना केली पाहिजे. ॥ २ ॥